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कॉमनवेल्थ?

अगले वर्ष दिल्ली में आयोजित होने वाले कॉमनवेल्थ खेलो के लिए महज़ एक साल का समय बचा है और लगभग 70 प्रतिशत परियोजनाओ का 40 से 65 फीसदी कार्य ही संपन्न हो सका है! कार्यो को अमलीजामा पहनाने के लिए दिल्ली में हर तरफ विकास कार्य काफी तेजी से चल रहा है तेजी का आलम यह है की जल्दी काम खत्म करने के चलते मेट्रो के कई बड़े हादसे होते-होते बच गए और कई छोटे-छोटे हादसे हो भी गए!
आखिरी गेंद पर छक्का मारने की हमारी आदत कभी नहीं जायेगी! हमारी दिल्ली सरकार भी अब आखिरी गेंद पर छक्का मारने को तैयार है और शायद वह सफलता भी हासिल कर लेगी परन्तु सवाल यह है की हमे पहले अपने देश की की दयनीय स्थिति के बारे में सोचना चाहिए या कॉमनवेल्थ खेलो के लिए? हमारी सरकार आज विदेशों से आने वाले 8500 एथ्लितो के निवास के लिए 1600 करोड़ रुपये खर्च करके खेलगाव का निर्माण करा रही है परन्तु दिल्ली की अवे़ध कालोनियो में रह रहे लाखो लोगो के घरो का मामला लगता है ठंडा हो गया! शीला सरकार ने विधानसभा चुनाव से पूर्व जनता से वादा किया था कि सभी अवे़ध कालोनियो को नियमित किया जाएगा परन्तु अभी तक कुछ हो न सका!
वही केंद्र सरकार ने भी कॉमनवेल्थ खेलो के लिए दिल्ली सरकार को पैसे तथा पॉवर से मालामाल किया परन्तु केंद्र ने भी बिहार और झारखण्ड जैसे राज्यों को नहीं देखा जहाँ केवल 3.5 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए सौचालय कि व्यवस्था है! विदेशी मेहमानों तथा खिलाडियों के लिए लग्जरी एम्बुलेंसों कि व्यवस्था कि गई जबकि अपने देश के नागरिको के लिए अस्पताल,डॉक्टरो तथा चिकित्सा सुविधाओ का आभाव है! 1,00,000 मरीजो के लिए सिर्फ 60 डॉक्टर मोजूद है! आजादी के समय यह संख्या 40 थी देशभर में लगभग 15,543 अस्पताल, 8 लाख 75 हज़ार बेड, 6 लाख डॉक्टर तथा 15 लाख नर्स है जबकि विश्व मापदंडो पर खरा उतरने के लिए हमे अभी 1,00,000 मरीजो के लिए 100 डॉक्टर कि जरुरत है! वही अगले 5 वर्षो में 80 हज़ार बेड प्रत्येक वर्ष बढाने होंगे W.H.O के मानदंडो के लिए! साथ ही चिकित्सा सुविधाओ को और बेहतर करना होगा और जब अपने ही नागरिको को इतनी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हो तो इन कॉमनवेल्थ खेलो का क्या फायदा? पहले हमे अपने नागरिको को सुरक्षा तथा सुविधा प्रदान करनी चाहिए, उसके बाद इस प्रकार के खेलो का आयोजन करना चाहिए!
अतुल कुमार
 

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