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सोच का फर्क

one matchstic can burn lakhs of trees and one tree makes lakhs of matchstics"
जी हाँ यह कथन बिलकुल सही है एक माचिस की तिल्ली लाखो पेड़-पोधों को जला कर राख कर सकती है वहीँ एक पेड़ से माचिस की लाखो तिल्लिया बनाई जा सकती है यहाँ सिर्फ सोच का फर्क है की हम क्या सोचते है हम उस एक तिल्ली से लाखो पेड़ो को जलाये या एक पेड़ से लाखो और माचिस की तिल्लिया बनाये! जी हाँ सिर्फ हमारी सोच का खेल है ये, अब आप सोच रहे होंगे की मैं कहना क्या चाहता हूँ दरअसल मैंने एक समाचार-पत्र में एक ख़बर पढ़ी जिसमें लिखा था की यमुना नदी को लन्दन की टेम्स जैसा बनाना आसन नहीं! इसके पीछे तर्क दिए हुए थे की यमुना की लम्बाई 1000 किलोमीटर से अधिक है जबकि टेम्स की 250 किलोमीटर है साथ ही यमुना के अधिकतर वेटलैंड सूख चुके है जबकि टेम्स के वेटलैंड जिन्दा है इसी के साथ यमुना समुंद्र से बहुत दूर है जबकि टेम्स समुंद्र के नजदीक है जिसके चलते उसकी सफाई करना आसान है! मैं इन तर्कों के खिलाफ नहीं हूँ पर क्या सिर्फ यह तर्क ही यमुना की सफाई में बाधा बने हुए है ?सच बात तो यह है की हम खुद ही यमुना को बचाना नहीं चाहते हमने खुद ही यमुना को मारा है और आज कान्हा की यमुना तड़प-तड़प कर मर रही है यदि आज स्वर्गीय "राज कपूर" जी जिन्दा होते तो वह "राम तेरी गंगा मैली" के बाद शायद "कान्हा तेरी यमुना मैली" नामक फिल्म भी बना डालते! यमुना की सफाई के लिए सरकार ने बहुत सी योजनाए बनाई तथा बहुत धन भी खर्च किया परन्तु नतीजा वही ढाक के तीन पात सही मायने में सरकार और दिल्ली वासी यमुना को साफ़ करना ही नहीं चाहते जनता सरकार को दोष देती है और सरकार जनता को सही मायाने में यमुना की सफाई के लिए सरकार तथा जनता दोनों को अहम् भूमिका निभानी पड़ेगी! यदि हम सब एक संकल्प कर ले की हमे किसी भी हाल में यमुना को बचाना है इसे फिर से जीवित करना है तो यकीं मानिए यमुना बहुत जल्द फिर से जीवित हो उठेगी परन्तु सिर्फ तभी जब हम यमुना को साफ़ करना चाहेंगे अन्यथा सरकार कितनी भी योजनाए बना ले तथा कितना भी धन खर्च कर ले यमुना को मरने से कोई नहीं रोक सकता
अतुल कुमार

1 comments:

Anonymous said...

hello... hapi blogging... have a nice day! just visiting here....

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